पति-पत्नी को एक-दूसरे के अलग रखना ‘अत्यधिक क्रूरता’, तलाक पर दिल्ली हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी

तलाक के एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की और कहा कि विवाहित जोड़ों को एक-दूसरे से अलग रखना अत्यधिक क्रूरत है. दरअसल, एक शख्स को तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक विवाहित जोड़े को एक-दूसरे के साथ एवं वैवाहिक रिश्ते से वंचित करना अत्यधिक क्रूरता का काम है.

फैमिली कोर्ट ने पत्नी द्वारा क्रूरता के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 की धारा 13 (1) (आईए) के तहत एक पति को तलाक दे दिया था. अदालत ने कहा, ‘किसी जोड़े को एक-दूसरे के साथ और वैवाहिक रिश्ते से वंचित किया जाना अत्यधिक क्रूरता का काम है.’ दोनों पक्षों की शादी 2012 में हुई थी, लेकिन अलग होने से पहले वे केवल दस महीने तक साथ रहे. दोनों परिवारों द्वारा सुलह कराने के प्रयासों के बावजूद, जोड़े के बीच मतभेद बने रहे, जिससे विवाह में अविश्वास, नाखुशी और अनिश्चितता पैदा हुई.

अदालत ने कहा कि भले ही ये मतभेद व्यक्तिगत रूप से सामान्य वैवाहिक मुद्दों की तरह लग सकते हैं, लेकिन महीनों तक इनका लगातार बने रहना, जिसका कोई समाधान नजर नहीं आता, मानसिक आघात का कारण बना. इसने घर की स्थिति के बारे में पति की निरंतर आशंका को भी उजागर किया, चाहे वह काम पर हो या घर पर. पत्नी के खुद को कमरे में बंद करने की हरकत से पति के मन में उसके खिलाफ झूठे मामले दर्ज होने का डर प्रबल हो गया.

अंत में, अदालत ने पत्नी के कृत्य को क्रूरता माना और पारिवारिक अदालत द्वारा दिए गए तलाक को बरकरार रखा. इसने वैवाहिक रिश्ते में साहचर्य, आपसी विश्वास और एकजुटता के महत्व की ओर इशारा किया, जिसका इस मामले में झूठे निहितार्थों के व्यापक भय के कारण अभाव था.

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