तेहरान/नई दिल्ली: अली लारीजानी ने सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की ज़िम्मेदारी संभालने के बाद अपने पहले विस्तृत साक्षात्कार में ईरान की रक्षा रणनीति, कूटनीतिक सीमाएं, क्षेत्रीय समीकरण और घरेलू प्राथमिकताओं पर खुलकर बातचीत की। यह साक्षात्कार आयतुल्लाह ख़ामेनेई की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ, जिसने इस्लामी गणराज्य की विचारधारा में निरंतरता के साथ-साथ इस वास्तविकता को भी उजागर किया कि आज की परिस्थितियों में मज़बूती केवल हथियारों से नहीं बल्कि वैज्ञानिक प्रगति, कूटनीतिक लचीलापन और सामाजिक सहनशक्ति के मेल से संभव है।
लारीजानी ने शुरुआत में स्पष्ट किया कि मौजूदा युद्धविराम को स्थायी शांति समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। उन्होंने ईरान-इराक युद्ध के आठ साल लंबे संघर्ष का हवाला दिया, जो निर्णायक जीत से नहीं बल्कि कठिन धैर्य-आधारित युद्धविराम पर समाप्त हुआ। इस ऐतिहासिक अनुभव को आधार बनाकर उन्होंने मौजूदा हालात को एक लंबी थकान-भरी लड़ाई के हिस्से के रूप में परिभाषित किया, जहाँ अस्तित्व का सवाल केवल सैन्य क्षमता पर नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकजुटता पर टिका है। उन्होंने याद दिलाया कि 1980 के दशक में ईरानी जनता की एकता और इमाम खोमैनी जैसे नेताओं के धैर्यपूर्ण नेतृत्व ने दुश्मनों को विफल किया। आज भी, उन्होंने कहा, आयतुल्लाह ख़ामेनेई का मार्गदर्शन इसी धैर्य की धुरी है।
हालाँकि उन्होंने मज़बूती पर ज़ोर दिया, परंतु किसी प्रकार की विजयोल्लास से बचते हुए उन्होंने बारह दिन के युद्ध के दौरान हुई कार्यात्मक कमियों को स्वीकार किया और यह पुष्टि की कि उन्हें दूर करने के लिए एक रक्षा परिषद का गठन किया गया है। यह उसी तरह है जैसे ईरान-इराक युद्ध के शुरुआती वर्षों में पराजयों के बाद आईआरजीसी (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स) को विषम युद्धक क्षमताएँ विकसित करने का अवसर दिया गया था। उन्होंने कहा, हवाई रक्षा, रडार और मिसाइल एकीकरण में जो कमियाँ हैं, उन्हें तत्काल दुरुस्त करना होगा। लेकिन 1980 के दशक से अलग, अब ईरान का इरादा अपने वैज्ञानिक और तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र- विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और युवा नवप्रवर्तकों को सक्रिय करके युद्धक क्षमता में आधुनिकता लाने का है। इसी उद्देश्य से परिषद में प्रौद्योगिकी के लिए एक नया डिप्टी पद भी बनाया गया है।
जासूसी और घुसपैठ के सवाल पर लारीजानी ने स्वीकार किया कि खतरे अब बदल चुके हैं। पहले दुश्मन मानव स्रोतों पर निर्भर रहते थे, लेकिन अब डेटा और तकनीकी श्रेष्ठता का उपयोग किया जाता है। उन्होंने स्टक्सनेट साइबर हमले का उदाहरण दिया, जिसने स्पष्ट कर दिया कि साइबर स्पेस अब निर्णायक युद्धक्षेत्र बन चुका है। उनके इस खुले स्वीकार से यह संकेत मिलता है कि ईरान अब पारंपरिक जासूसी के साथ-साथ तकनीकी घुसपैठ के खिलाफ भी मज़बूत प्रतिव्यवस्था तैयार करेगा।
उन्होंने सूचना नियंत्रण की नीति पर भी विचार किया। क्रांति के शुरुआती वर्षों और ईरान-इराक युद्ध के दौरान तेहरान कभी गोपनीयता तो कभी अति-प्रचार के बीच झूलता रहा, जिससे विश्वसनीयता को नुकसान हुआ। लारीजानी ने सुझाव दिया कि ईमानदारी को ही शक्ति माना जाना चाहिए, “यदि आप किसी विषय पर बात नहीं कर सकते तो कह दें, लेकिन झूठ न बोलें।” यह बदलाव सख़्त गोपनीयता से मापी हुई पारदर्शिता की ओर संकेत करता है, जिसका मकसद डिजिटल युग की तत्काल शंकाओं के बीच जनता का भरोसा बनाए रखना है।
कूटनीति में उन्होंने लचीलापन और चुनौती दोनों का मिश्रण पेश किया। उन्होंने “वीर लचीलापन” (Heroic Flexibility) की अवधारणा का ज़िक्र किया, जिसे आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 2013 में परमाणु वार्ताओं के दौरान प्रस्तुत किया था। लारीजानी ने याद दिलाया कि 2015 के परमाणु समझौते (JCPOA) में ईरान ने प्रतिबंधों के दबाव में प्रवेश किया, लेकिन उसने कभी यूरेनियम संवर्द्धन पूरी तरह नहीं छोड़ा। उनके अनुसार सामरिक रेखाएँ अडिग हैं, और कोई भी वार्ता ईरान की संप्रभुता से समझौता नहीं कर सकती। उन्होंने कहा, “ईरानी कोई ऐसी क़ौम नहीं है जो आत्मसमर्पण करे।”
प्रतिरोध मोर्चे पर उन्होंने ज़ोर दिया कि लेबनान, फ़िलिस्तीन, इराक और यमन में आंदोलन ईरान की निर्देश पर नहीं बल्कि स्थानीय असंतोष के कारण कायम हैं। जैसे पश्चिम ने 2006 के युद्ध से पहले हिज़बुल्लाह की क्षमता को कम आँका था, वैसे ही इन आंदोलनों की जड़ें स्थानीय हक़ीक़तों में हैं, इसलिए वे टिकाऊ हैं। उन्होंने इन्हें “भाई” कहा, “क्लाइंट” नहीं। यही ईरान की “फ़ॉरवर्ड डिफ़ेन्स” नीति की पुष्टि है, सुरक्षा सीमाओं से परे जाकर भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
कॉकस क्षेत्र पर बोलते हुए उन्होंने पश्चिमी घेराबंदी रणनीति की चेतावनी दी। आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच अमेरिकी मध्यस्थता को उन्होंने ईरान को भू-राजनीतिक रूप से घेरने की योजना बताया, जैसे 2001 के बाद इराक और अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी ठिकानों ने खतरा पैदा किया था। उन्होंने कहा कि आर्मेनिया ने उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर तक ईरान की पहुँच का आश्वासन दिया है, लेकिन इसे औपचारिक बनाया जाना चाहिए, क्योंकि पहले मौखिक आश्वासन अक्सर विफल साबित हुए हैं। बाक़ू में इज़राइली प्रभाव की रिपोर्टों पर उन्होंने सतर्क रुख़ अपनाया, कहा कि अभी कोई सबूत नहीं है, लेकिन ईरान सतर्क रहेगा और बिना जल्दबाज़ी के तनाव को नियंत्रित करना पसंद करेगा।
परमाणु सवाल पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के पूर्व महानिदेशक मोहम्मद अलबरादेई की स्वतंत्रता की तुलना रफ़ाएल ग्रॉसी से की, जिन पर उन्होंने पश्चिम और इज़राइल के दबाव में काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि ईरान परमाणु हथियार नहीं चाहता, लेकिन परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से बाहर निकलना हमेशा एक विकल्प रहेगा। उन्होंने यूरोप पर आरोप लगाया कि वार्ताओं का उपयोग केवल टालने और देरी कराने के लिए किया गया है। स्नैपबैक मैकेनिज्म को उन्होंने अमेरिकी प्रेरित और प्रक्रियागत रूप से त्रुटिपूर्ण बताया, जैसा तेहरान ने JCPOA के पतन के समय भी कहा था।
साझेदारी पर उन्होंने चीन, रूस और क्षेत्रीय पड़ोसियों की ओर ईरान के झुकाव का बचाव किया। पश्चिमी शत्रुता के चलते यह विकल्प अनिवार्य बन गया है। उन्होंने 1980 के दशक का ज़िक्र किया जब बीजिंग ने तेहरान को हथियार और तेल सौदों में मदद की थी। लेकिन उन्होंने साफ़ कहा कि ये साझेदारियाँ बिना शर्त भरोसेमंद नहीं हैं, मॉस्को और बीजिंग अक्सर ईरान की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते। इसलिए तेहरान को अपनी क्षमताओं को विविध और मज़बूत बनाना ही होगा।
सबसे महत्वपूर्ण क्षण तब आया जब लारीजानी ने भू-राजनीति से हटकर घरेलू जीवनयापन की कठिनाइयों पर बात की। उन्होंने स्वीकार किया कि आम ईरानियों के लिए बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना किसी भी अन्य चुनौती से अधिक भारी है। यह उसी तरह है जैसे 1980 के दशक के अंत में आर्थिक थकान ने तेहरान को युद्ध समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 598 स्वीकार करने पर मजबूर किया। आज भी, उन्होंने संकेत दिया कि वैधता और टिकाऊपन अब कारख़ानों को पुनर्जीवित करने, ऊर्जा आपूर्ति स्थिर करने और सरकार- संसद सहयोग को मज़बूत करने पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि जनता का धैर्य आर्थिक पुनर्निर्माण के बिना कायम नहीं रह सकता, क्योंकि कोई भी वैचारिक मज़बूती टूटी हुई अर्थव्यवस्था की भरपाई नहीं कर सकती।
समग्र रूप से, लारीजानी की टिप्पणियाँ आश्वासन और चेतावनी दोनों का मिश्रण थीं। उन्होंने जनता से ईमानदारी, एकता और जीवनयापन पर ध्यान देने का वादा किया, जबकि दुश्मनों को स्पष्ट संदेश भेजा कि ईरान न तो आत्मसमर्पण करेगा, न ही निहत्था होगा, और न ही अपने क्षेत्रीय सहयोगियों को छोड़ेगा। युद्धविराम को उन्होंने अस्थायी बताया और संकेत दिया कि टकराव लंबा चलेगा। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आधुनिकीकरण और आर्थिक पुनरुद्धार, घरेलू वैधता को बनाए रखने के लिए रक्षा क्षमताओं जितने ही महत्वपूर्ण हैं।
उनके अनुसार कारख़ाने और ईंधन देश के अस्तित्व के लिए उतने ही ज़रूरी हैं जितने मिसाइल और मिलिशिया। यह साक्षात्कार ईरान की चार दशकों की रणनीतिक स्मृति का निचोड़ है: अस्तित्व प्रतिरोध, सुधार और सहनशक्ति के संतुलन पर टिका है। इस्लामी गणराज्य बातचीत करेगा, लेकिन केवल मज़बूती से; वह बदलेगा, लेकिन कभी आत्मसमर्पण नहीं करेगा; और वह तब तक कायम रहेगा जब तक उसकी जनता वैचारिक दृढ़ता के साथ-साथ ठोस प्रगति भी देखेगी।
यह साक्षात्कार मूल रूप से आयतुल्लाह ख़ामेनेई की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ था, उपलब्ध है: https://english.khamenei.ir. साक्षात्कार का पूरा पाठ सीधे यहाँ पढ़ा जा सकता है: https://english.khamenei.ir/news/11866/Iranians-are-not-a-people-who-surrender.
-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X @shahidsiddiqui