
देश में आर्थिक सुस्ती से जुड़े आंकड़े लगातार आ रहे हैं. खपत में निवेश में कमी से जीडीपी ग्रोथ रेट घट रहा है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी यानी CMIE के आंकड़ों के मुताबिक कंपनियों के नए निवेश में लगातार कमी आ रही है. इससे जुड़ी परियोजनाएं सिकुड़ती जा रही हैं. 2014-15 में नई निवेश परियोजनाओं की कुल वैल्यू 21.04 खरब रुपये थी लेकिन 2018-19 में यह घट कर 11.30 खरब रुपये रह गई.
2014-15 की निवेश परियोजनाओं में लगभग 20 फीसदी निवेश पावर सेक्टर से जुड़ी थीं. खास कर रीन्यूबल एनर्जी सेक्टर में यह निवेश किया गया था. केयर रेटिंग के मुताबिक आने वाले दिनों में प्राइवेट सेक्टर का निवेश इस बात पर निर्भर करता है कि खपत कितनी तेजी से बढ़ती है. इसके साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश में इजाफा भी प्राइवेट सेक्टर के निवेश की रफ्तार तय करेगा.
मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान निजी निवेश में खास इजाफा देखने को नहीं मिलेगा क्योंकि पहली तिमाही के जीडीपी ग्रोथ के आकंड़े काफी निराशाजनक रहे हैं. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट गिर कर पांच साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया. यह साढ़े छह साल का न्यूनतम स्तर है. इन आंकड़ों ने इकनॉमी का सेंटिमेंट खराब किया है. जाहिर है अगले कुछ महीने में निवेश पर इसका नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है.
मैन्यूफैक्चरिंग आउटपुट में गिरावट
मैन्यूफैक्चरिंग आउटपुट में भारी गिरावट और कृषि सेक्टर के खराब प्रदर्शन की वजह से भारत की जीडीपी ग्रोथ गिरकर साढ़े छह साल के न्यूनतम स्तर पर आ गई. साथ ही मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) लुढ़ककर 0.6% पर आ गई है. जबकि पिछले फाइनेंशियल ईयर में ये 12.1 परसेंट थी.आठ कोर सेक्टरों का प्रदर्शन भी काफी निराशाजनक रहा. 2018 जुलाई में इसका ग्रोथ रेट 7.3 फीसदी था लेकिन जुलाई 2019 में 2.1 फीसदी पर पहुंच गया.