दूध की खरीद में संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने पर जोर


दूध प्रस्करण क्षमता बढ़ाकर अगले पांच साल में दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर चल रही केंद्र सरकार दूध की खरीद में संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने पर जोर दे रही है। केंद्रीय पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि किसान जितना दूध बेचते हैं, उसका सिर्फ 36 फीसदी ही संगठित क्षेत्र खरीदता है। इस संगठित क्षेत्र में सहकारी और निजी क्षेत्र दोनों शामिल हैं।

मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि बाकी 64 फीसदी को संगठित क्षेत्र के दायरे में लाने की जरूरत है। सरकार इसके लिए कोशिश कर रही है।

गौरतलब है कि आम बजट 2020-21 को एक फरवरी को संसद में पेश करते समय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि 2025 तक दूध प्रसंस्करण क्षमता 5.35 करोड़ टन से बढ़ाकर 10.8 करोड़ टन की जाएगी।

मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014-15 के दौरान देश में दूध का उत्पादन 14.63 करोड़ टन था जो बीते पांच साल में यानी 2018-19 में बढ़कर 18.77 करोड़ टन हो गया।

सरकार के आंकड़ों के अनुसार, इसमें किसानों 46 फीसदी तक खुद उपभोग करता है, जबकि बचा हुआ 54 फीसदी दूध उनके पास बेचने के लिए होता है जिसे माकेर्टेबल सरप्लस कहते हैं।

इस माकेर्टेबल सरप्लस दूध का 36 फीसदी ही संगठित क्षेत्र के पास पहुंच पाता है। लिहाजा, सरकार बाकी 64 फीसदी को भी संगठित क्षेत्र के दायरे में लाने की कोशिश में जुटी है।

मंत्रालय ने बयान में बताया कि बीते दो साल में सहकारी क्षेत्रों द्वारा दूध की खरीद में करीब नौ फीसदी का इजाफा हुआ है। पशुपालन व डेयरी विभाग द्वारा पशुओं में आनुवंशिक सुधार और पशुपालन की लागत में कमी लाने की दिशा में लगातार प्रयास किया जा रहा है।

हाल ही में पशुपालन व डेयरी विभाग के सचिव अतुल चतुर्वेदी ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा कि पशुओं के नस्लों में सुधार, के साथ-साथ उनके आरोग्य और पौष्टिक आहार से जुड़े कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिससे पशुपालकों की लागत में कमी आएगी और उनकी आय बढ़ेगी।

उन्होंने बताया कि फुट एंड माउथ डिजीज और ब्रूसेलोसिस की रोकथाम के लिए पिछले साल लांच किए गए टीकाकरण कार्यक्रम प्रगति में है।

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