
दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित का निधन हो गया है. वे 81 साल की थीं. उनका निधन दिल्ली के फोर्टिस एस्कार्ट्स अस्पताल में हुआ.
वे बीते कुछ समय से हृदय संबंधी रोगों के चलते गंभीर रूप से बीमार थीं.
शीला दीक्षित 1998 से 2013 तक लगातार 15 सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं. 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया था. लेकिन अगस्त, 2014 में उन्होंने इस पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.
2019 के आम चुनावों के वक्त शीला दीक्षित दिल्ली की प्रदेश अध्यक्ष रहीं. उन्होंने उत्तर-पूर्व दिल्ली से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन मनोज तिवारी के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
आज शाम दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित उनके घर पर पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा. उनका अंतिम संस्कार रविवार दोपहर को किया जाएगा.
शीला दीक्षित के निधन पर किसने क्या कहा
देश के राष्ट्रपति के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है, “दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ राजनेता श्रीमती शीला दीक्षित के निधन से बहुत दुख हुआ. बतौर मुख्यमंत्री उनका कार्यकाल दिल्ली के बदलाव का समय था. जिसे हमेशा याद रखा जाएगा.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन पर शोक जाहिर करते हुए ट्वीट किया है. “शीला दीक्षित के निधन की ख़बर से बेहद दुखी हूं.”
राहुल गांधी ने शीला दीक्षित के निधन पर अपनी संवेदना ज़ाहिर करते हुए लिखा है कि यह ख़बर सुनकर बेहद दुखी हैं. वो कांग्रेस पार्टी की प्यारी बेटी थीं. मैं निजी तौर पर उनके बेहद क़रीब था.
पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट किया है कि राजनीति में भले ही हम पक्ष-विपक्ष में थे लेकिन निजी ज़िंदगी में हम दोस्त थे. वो एक बेहतरीन इंसान थीं.
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन पर उमर अब्दुल्लाह ने ट्वीट करते हुए दुख ज़ाहिर किया है. उन्होंने लिखा कि शीला दीक्षित का जाना दुखद है. बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने दिल्ली में करिश्मा करके दिखाया. जो कोई भी उन्हें जानता होगा वो उन्हें बहुत याद करेगा.
शीला दीक्षित के जीवन के सफ़र पर बीबीसी संवाददाता रेहान फ़ज़ल ने ख़ास विवेचना तैयार की थी, जो पहली बार 10 फरवरी, 2018 को बीबीसी हिंदी पर छपी थी.
आप वह पूरी रिपोर्ट नीचे पढ़ सकते हैं, जिससे शीला दीक्षित के जीवन के विभिन्न रंगों के बारे में आपको पता चल जाएगा.
बात उन दिनों की है जब देवानंद भारतीय किशोरियों के दिल पर राज कर रहे थे. पहला फ़िज़ी ड्रिंक ‘गोल्ड स्पॉट’ भारतीय बाज़ारों में प्रवेश कर चुका था. टेलिविजन की शुरुआत नहीं हुई थी.
यहाँ तक कि रेडियो में भी कुछ ही घंटों के लिए कार्यक्रम आते थे. एक दिन 15 साल की बच्ची शीला कपूर ने तय किया कि वो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने उनके ‘तीनमूर्ति’ वाले निवास पर जाएंगी. वो ‘डूप्ले लेन’ के अपने घर से निकली और पैदल ही चलते हुए ‘तीनमूर्ति भवन’ पहुंच गईं.
गेट पर खड़े एकमात्र दरबान ने उनसे पूछा, आप किससे मिलने अंदर जा रही हैं? शीला ने जवाब दिया ‘पंडितजी से’. उन्हें अंदर जाने दिया गया. उसी समय जवाहरलाल नेहरू अपनी सफ़ेद ‘एंबेसडर’ कार पर सवार हो कर अपने निवास के गेट से बाहर निकल रहे थे. शीला ने उन्हें ‘वेव’ किया. उन्होंने भी हाथ हिला कर उनका जवाब दिया.
क्या आप आज के युग में प्रधानमंत्री तो दूर किसी मामूली विधायक के घर पर इस तरह घुसने की जुर्रत कर सकते हैं? शीला कपूर भी कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थीं कि जिस शख़्स ने इतनी गर्मजोशी से उनके अभिवादन का जवाब दिया है, 32 साल बाद वो उसके ही नाती के मंत्रिमंडल की महत्वपूर्ण सदस्य होंगीं.