पुलकित सम्राट, वरुण शर्मा, मनजोत सिंह और पंकज त्रिपाठी की चौकड़ी और भोजी पंजाबन के तड़के वाली फिल्म ‘फकरे 3’ आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. 10 साल पहले आई इस सीरीज की पहली फिल्म ने दर्शकों को खूब हंसाया और गुदगुदाया था. ‘फुकरे 2’ भी काफी हद तक इस सीरीज के उसी मजेदार अंदाज को बनाए रखने में कामयाब हुई. लेकिन क्या ये तीसरी किस्त भी उतनी ही मजेदार होगी? क्या अली फजल के बिना फुकरों की इस टोली में कुछ कमी महसूस होगी…? इस रिव्यू में आपको बताते हैं कि आखिर कैसी है ये फिल्म.
कहानी: पिछली फिल्म में सीएम साहब ने इन फुकरों यानी हनी (पुलकित सम्राट), चूचा (वरुण शर्मा), लाली (मनजोत सिंह) और पंडित जी (पंकज त्रिपाठी) को एक जनता स्टोर नाम का डिपार्टमेंटल स्टोर खोलकर दिया था. लेकिन इस फिल्म में इस स्टोर से डिपार्ट अलग और मेंटल अलग हो चुका है और फुकरे फिर से फुकरागिरी कर रहे हैं. वहीं भोली पंजाबन अब राजनीति में आकर अपने साम्राज्य को अलग ही अंदाज में बढ़ाने की प्लानिंग कर रही है. चूचा के देजाचू का जादू अब भी चल रहा है. लेकिन अपने इसी देजाचू के चलते वो अफ्रीका पहुंच जाते हैं. कहानी में कई ट्विस्ट हैं और इसी बीच इन फुकरों को पता चलता है कि अब चूचा के पास नई पावर आ गई है. उसका यूरिन अब पेट्रोल की तरह ज्वलनशील पदार्थ बन चुका है. अब जहां ज्वलनशील पदार्थ और चूचा हो, वहां आग लगना तो लाजमी है और यही फिल्म में आगे होता है. आखिर यहां क्या हो रहा है, इसके लिए आपको सिनेमाघरों में जाकर फिल्म देखनी होगी.
पहली 2 फिल्में नहीं देखीं, तो भी फर्क नहीं
सबसे पहले तो अगर आप सोच रहे हैं कि आपने इस सीरीज की पहली फिल्में नहीं देखी हैं या ये तीसरी देखने से पहले आपको पहली दो देखनी होगी तो खुशखबरी है. फिल्म की शुरुआत में ही मेकर्स आपको पहले की दोनों फिल्मों का पूरा री-कैप दे रहे हैं. जिससे कहानी से जुड़ने में ज्यादा टाइम नहीं लगता है. कहानी की बात करें तो इस बार की कहानी काफी कमजोर है. चीजें बस हो रही हैं, लेकिन जिस तरह की घबराहट फुकरों को लेकर पिछली 2 फिल्मों में रहती है कि ‘अब बेचारों के साथ क्या होगा’.. वो इस बार आप महसूस नहीं कर पाएंगे.
फिल्म का फर्स्ट हाफ शुरू मजेदार नोट पर हुआ लेकिन अफ्रीका जो कहानी का हिस्सा दिखाया गया है, वो बहुत खिंचा हुआ लगता है. वैसे कहानी के खिंचने और बोरियत वाली फीलिंग आपको कई बार महसूस हो सकती है. फिल्म में कुछ चीजें हो रही हैं, पर क्यों पता नहीं. जैसे टेंकर माफिया और भोली पंजाबन फुकरों से इलेक्शन के मैदान में बुरी तरह डर रहे हैं, पर क्यों ये पता नहीं. वहीं सेकंड हाफ में सोशल मैसेज घुसाने के चक्कर में कहानी को अजीब सा क्लाइमैक्स दिया गया है. क्लाइमैक्स तो इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है. साथ ही फिल्म इस बार काफी लंबी भी महसूस होती है. फिल्म के सभी जरूरी पंच आप पहले ही ट्रेलर में सुन चुके हैं. ऐसे में फिल्म में एक भी मुमेंट ऐसा नहीं है, जो आए और आप पेट पकड़कर हंसें. हंसी का पता नहीं पर कई जगह खींज जरूर आती है कि 2023 में तो कम से कम हम इससे अच्छा सिनेमा डिसर्व करते हैं.
एक्टिंग की बात करें वो इस फिल्म का अच्छा भाग है. भोली पंजाबन इस बार काफी खूबसूरत लगी हैं तो वहीं कहानी में मासूमियत का पूरा जिम्मा चूचा ने अपने सिर उठाया है. ऋचा और वरुण दोनों ही अपने-अपने किरदारों में जमे हैं. पंकज त्रिपाठी, मनजोत और पुलिकत की जुगलबंदी अच्छी है. हालांकि मनुऋषि चड्ढा जैसे एक्टर को फिल्म में क्यों बर्बाद किया गया है, ये भी सोचने वाली बात है. म्यूजिक की बात करें तो गाने बीच-बीच में ही फिल्म में आते हैं, जो इसकी स्पीड नहीं रोकते. बैकग्राउंड में बजने वाले गाने ठीक हैं.
कई बार बेहद बेकार और बिना दिमाग के ‘वॉट्स अप जॉक्स’ के जरिए हंसाने की कोशिश करती फिल्मों के लिए आप एक ही तर्क सुनेंगे कि ‘ये फिल्म मजेदार है, आप दिमाग घर पर रखकर जाइए तो आप इसे खूब इंजॉय करेंगे.’ पर मुझे समझ नहीं आता कि दिमाग क्यों घर पर रखना है? हो सकता है किसी बेहद बेकार सी एक्शन फिल्म की तारीफ करते वक्त कोई आपसे कहे कि ‘दिल घर पर रख कर जाइए’, अगली बार कहे ‘कलेजा, किडनी घर रखकर जाइए…’ तो सब घर पर ही रखना है तो सिनेमाघर जाना ही क्यों है. इस फिल्म में भोली पंजाबन के कैंपेन के दौरान एक नारा लगाया गया है, No Pain No Gain, Delhi People use Brain… इस फिल्म के लिए भी इस बार ऐसा ही लग रहा है कि जैसे कोई पेन नहीं लिया गया है और इसलिए कोई गेन भी कहानी में नहीं हुआ है. अब दर्शकों को ये फिल्म देखनी है या नहीं, इसलिए Use Brain. मेरी तरफ से इस फिल्म को 2.5 स्टार.