ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन के खिलाफ भारत से सहयोग क्यों चाहता है अमेरिका?

पीएम नरेंद्र मोदी की अमेरिकी राजकीय यात्रा के दूसरे दिन उनकी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात होगी. उनकी इस मुलाकात के दौरान दोनों देशों के बीच अधिक आर्थिक सहयोग  को बढ़ावा कैसे दिया जाए इस पर चर्चा होगी. इसके साथही दोनों देश एक मजबूत सप्लाई चेन बनाने कि लिए मिलजुल कर काम करने पर कोई फैसला कर सकते हैं. इसकी वजह से एक बार फिर वैश्विक सप्लाई चेन सुर्खियों में आ गई है और साथ में चीन का इस सप्लाई चेन में बढ़ी भागीदारी या दखल भी. आइए जानते हैं कि आखिर ये ग्लोबल सप्लाई चेन क्या है और आखिर क्यों अमेरिका इसमें चीन की बड़ी भागीदारी से चिंतित है?

क्या है ग्लोबल सप्लाई चेन
ग्लोबल सप्लाई चेन एक तरह का वैश्विक नेचवर्क होता है जिसका उपयोग कर संस्थाएं उत्पाद और सेवाओं का निर्माण करने में करती हैं. यह नेटवर्क कई देशों तक फैला हो सकता जिससे उत्पाद और सेवाओं के लिए जरूरी आपूर्ति की जा सके. बहुत से ग्लोबल सप्लाई चेन में सूचना, संसाधन, प्रक्रियाओं आदि का दुनिया भर में प्रवाह होता है

कई फायदे होते हैं इसके
इस लिहाज से देखें तो इस तंत्र में सस्ती तकनीक, संसाधन, आदि से उत्पान की लागत कम की जा सकती है और नए बाजार में जाकर विस्तार किया जा सकता है. मिसाल के तौर पर यदि कोई कंपनी भारत का कच्चा माल इस्तेमाल करती है, यूरोप में उसका उत्पादन करती है और अफ्रीका में भेजती तो इसमें सप्लाई चेन वैश्विक है.

ग्लोबल सप्लाई चेन और चीन
पिछले कई दशकों खास तौर से पिछले चार पांच दशकों में चीन ग्लोबल सप्लाई चेन का एक बड़ा हिस्सा बनता गया है. इसकी वजह वहां का सस्ता श्रम और तेजी से निर्माण करने के लिए बुनियादी ढांचे का विकास था जिसकी वजह से दुनिया की बहुत सारी, खास तौर से बड़ी कंपनियों ने अपने उत्पादन केंद्र चीन में स्थापित कर लिए. साथ ही बंदरगाह, मालवाहक पोत भी बनाए हैं जिससे आपूर्ति में परेशानी ना हो. ऐसे में अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के व्यवसाय की चीन पर निर्भरता बढ़ने लगी.

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