महिला आरक्षण विधेयक अब संसदीय लोकतंत्र में एक ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा है. विधेयक दोनों सदनों में भारी बहुमत से पारित हो गया, लेकिन इससे गायब रहे सांसदों ने ध्यान खींचा है. लोकसभा में, 543 सांसदों में से, दो ने विधेयक के खिलाफ मतदान किया, जबकि 454 ने पक्ष में मतदान किया – लगभग 80 की कमी रही. चूंकि नए संसद भवन में मत विभाजन की सुविधा नहीं है (यानी बटन दबाए जाने हैं और जिससे सांसदों के नाम का पता चलेगा), इसलिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कौन गायब था.
लोकसभा सचिवालय के सूत्रों ने यह भी कहा कि कई सांसद नजर नहीं आ रहे हैं. जैसे ही अध्यक्ष ने घोषणा की कि गलियारे खाली कर दिए जाएंगे और पर्चियों से मतदान शुरू हो जाएगा, कुछ सांसद अंदर और वापस जाने का रास्ता नहीं ढूंढ पाए. हालांकि, सूत्रों ने न्यूज 18 को यह भी बताया, ‘हम सांसदों को प्रशिक्षित कर रहे हैं और उन्हें ओरिएंटेशन कक्षाएं दे रहे हैं, इसलिए अगर कुछ लोग कहते हैं कि उन्हें अपना रास्ता नहीं मिल रहा है तो यह थोड़ा आश्चर्य की बात है.’
सोनिया गांधी ने नहीं लिया मतदान में हिस्सा
2010 के विपरीत तृणमूल कांग्रेस सदन में अनुपस्थित रही, इस बार एआईएमआईएम को छोड़कर कोई भी पार्टी विधेयक के खिलाफ मतदान करने का जोखिम नहीं उठा सकती थी. सोनिया गांधी अस्वस्थ होने के कारण मतदान के समय अनुपस्थित रहीं, हालांकि, वह विधेयक पर पहली वक्ता थीं. राज्यसभा में भी कुल वोट 215 थे और लगभग 250 सदस्यों में कोई भी विरोध में नहीं था. आम आदमी पार्टी (आप) के सदस्य राघव चड्ढा और संजय सिंह निलंबित होने के कारण मौजूद नहीं थे.
राज्यसभा में बहस के दौरान कई कुर्सियां खाली
हालांकि चौंकाने वाली बात यह है कि लोकसभा में लगभग 60 सदस्यों ने ही बहस में हिस्सा लिया. राज्यसभा में बहस के दौरान कई खाली सीटें देखी गईं जो कई सांसदों के गैर-गंभीर स्वभाव का प्रमाण है. दरअसल, अक्सर देखा गया है कि अति आवश्यक मामलों के दौरान सांसदों की अनुपस्थिति उजागर होती रही है. उदाहरण के लिए मणिपुर पर यह देखते हुए कि विपक्ष बहस चाहता था, बेंचें नहीं भरी गईं और इस पर बार-बार स्थगन हुआ.