
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर में भूराजनीतिक संघर्ष को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति एन.वी. रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि जम्मू-कश्मीर कई सालों से आतंकवादी विद्रोहों का अड्डा रहा है। इस पीठ में न्यायमूर्ति बी.आर.गवई और न्यायमूर्ति आर.सुभाष रेड्डी शामिल हैं।
कोर्ट ने कहा, “इसके मद्देनजर हमें राज्य की तरफ से पेश तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि 1990 से 2019 तक आतंकवादी हिंसा की 71,038 घटनाएं दर्ज की गई हैं। 14,038 नागरिकों की मौत हुई है व 5,292 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए। इसके साथ ही 22,536 आतंकवादी मारे गए हैं।”
कोर्ट ने कहा, “सहज रूप से अंतर्विरोध की इस भूमि में ये याचिकाएं (प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली) इस सूची में जुड़ती हैं, जिसमें दो पक्षों (याचिकाकर्ता व जे एंड के प्रशासन) ने दो अलग-अलग तस्वीरे पेश की हैं, जो बिलकुल विपरीत और तथ्यात्मक रूप से असंगत हैं।”
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि आधुनिक आतंकवाद बहुत ज्यादा इंटरनेट पर आश्रित है। इंटरनेट के परिचालन पर ज्यादा खर्च नहीं आता है और इसका पता लगाना भी बहुत आसान नहीं होता।
कोर्ट ने कहा, “इंटरनेट का इस्तेमाल भ्रामक छद्म युद्ध के समर्थन के लिए हो रहा है, इसके जरिए धन जुटाने, भर्ती करने व प्रोपगेंडा/विचारधाराओं को फैलाने का कार्य हो रहा है।”
शीर्ष कोर्ट ने यूनिवर्सिटी ऑफ डेटन स्कूल ऑफ ला के प्रतिष्ठित प्रोफेसर सुसान डब्ल्यू.ब्रेनर के हवाले से कहा कि इंटरनेट के प्रसार के कारण आतंकवाद के मामले में अब पारंपरिक तरीके संतोषजनक साबित नहीं हो रहे हैं।
सॉलिसिटर जनरल ने जिक्र किया कि आतंकवाद से युद्ध के लिए इस तरह के प्रतिबद्धों को लागू करने की जरूरत है, जिससे आतंकवाद को शुरुआत में ही खत्म किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की कानून व व्यवस्था की स्थिति से तुलना नहीं की जा सकती।