‘अपने पिट्ठुओं के जरिये हेमंत सोरेन…’ ED ने 285 पन्नों के हलफनामे में किया जमानत का विरोध, सुप्रीम कोर्ट में रखी ये दलील

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने खिलाफ मनीलॉन्ड्रिंग मामले की जांच को ‘राज्य मशीनरी का दुरुपयोग कर’ प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. ईडी ने लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत देने के उनके ‘विशेष अनुरोध’ का भी विरोध किया. जांच एजेंसी ने न्यायालय में यह दलील दी कि एक राजनीतिक नेता एक सामान्य नागरिक से अधिक किसी विशेष दर्जे का दावा नहीं कर सकता.

ईडी ने शीर्ष अदालत को बताया कि अगर सोरेन को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी जाती है, तो जेल में बंद सभी राजनीतिक नेता यह दावा करते हुए समान व्यवहार की मांग करेंगे कि वे ‘उनके ही वर्ग’ से आते हैं. जस्टिस दीपांकर दत्ता की एक अवकाशकालीन पीठ सोरेन की गिरफ्तारी के खिलाफ और उनकी अंतरिम जमानत अर्जी पर मंगलवार को सुनवाई करने वाली है.

इस बात पर जोर देते हुए कि देश में चुनाव साल भर होते रहते हैं, जांच एजेंसी ने कहा कि अगर सोरेन की ‘विशेष सलूक’ करने की प्रार्थना स्वीकार कर ली जाती है, तो किसी भी राजनीतिक नेता को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता और न्यायिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता. एजेंसी ने कहा कि 31 जनवरी को सोरेन की गिरफ्तारी को झारखंड हाईकोर्ट ने बरकरार रखा है और उनकी नियमित जमानत याचिका 13 मई को निचली अदालत द्वारा खारिज कर दी गई है.

गिरफ्तारी के खिलाफ और अंतरिम जमानत के लिए सोरेन की अर्जी पर शीर्ष अदालत में 285 पन्नों के अपने हलफनामे में, जांच एजेंसी ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्य से यह स्थापित होता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता अवैध तरीके से संपत्तियां हासिल करने और उनपर कब्जा रखने में शामिल हैं, जो अपराध से अर्जित आय है.

एजेंसी ने कहा, “पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) 2002 की धारा के तहत कई बयान दर्ज किये गए हैं, जिससे स्थापित होता है कि बरियातू में लालू खटाल के निकट शांति नगर में 8.86 एकड़ जमीन गैरकानूनी तरीके से हासिल की गई और यह हेमंत सोरेन के कब्जे एवं उपयोग में है तथा यह कृत्य गुप्त तरीके से किया गया.”

लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार अभियान के लिए सोरेन की अंतरिम जमानत अर्जी का विरोध करते हुए ईडी ने कहा, “यह गौर करना जरूरी है कि चुनाव में प्रचार करने का अधिकार न तो मूल अधिकार है, ना ही संवैधानिक अधिकार या कानूनी अधिकार है.” जांच एजेंसी ने कहा कि राज्य सरकार की मशीनरी का दुरुपयोग कर जांच को प्रभावित करने और “अपने पिट्ठुओं के जरिये अपराध की आय को वैध साबित करने” की सोरेन की ओर से कोशिश की जा रही.

पूर्व मुख्यमंत्री को ‘अत्यधिक प्रभावशाली व्यक्ति’ बताते हुए ईडी ने कहा कि उन्होंने जांच को विफल करने के लिए एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अधिकारियों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराने का भी सहारा लिया.

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *