पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) आज अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ (Mann Ki Baat) के 103वें एपिसोड को संबोधित करेंगे. पीएम मोदी का मासिक रेडियो कार्यक्रम सुबह 11 बजे प्रसारित किया जाएगा. वहीं मन की बात के 100वें एपिसोड से पहले कराए गए आईआईएम के सर्वे में पाया गया कि मन की बात 100 करोड़ श्रोताओं तक पहुंच गई है. पीएम नरेंद्र मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात से लगभग छियानवे प्रतिशत आबादी वाकिफ है. यह कार्यक्रम उन 100 करोड़ लोगों तक पहुंच चुका है जो जागरूक हैं और कम से कम एक बार इस कार्यक्रम को जरूर सुन चुके हैं.
मन की बात के श्रोताओं के ये आंकड़े प्रसार भारती द्वारा कराए गए और भारतीय प्रबंधन संस्थान, रोहतक द्वारा किए गए एक बड़े अध्ययन में सामने आए थे. इसके नतीजों को प्रसार भारती के सीईओ गौरव द्विवेदी और आईआईएम- रोहतक के निदेशक धीरज पी. शर्मा द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सामने रखा था. शर्मा ने अध्ययन के नतीजों के बारे में कहा कि 23 करोड़ लोग नियमित रूप से मन की बात कार्यक्रम से जुड़ते हैं. जबकि अन्य 41 करोड़ लोग कभी-कभार आते हैं, जिनके नियमित श्रोताओं में बदलने की गुंजाइश होती है.
आईआईएम के अध्ययन में यह आकलन करने की कोशिश की गई है कि मन की बात का अब तक देश की आबादी पर क्या असर पड़ा है. इसमें कहा गया कि अधिकांश श्रोता सरकारों के कामकाज से परिचित हो गए हैं और 73 फीसदी आशावादी हैं. वे महसूस करते हैं कि देश प्रगति करेगा. 58 फीसदी श्रोताओं ने कहा कि उनके रहने की स्थिति में सुधार हुआ है, जबकि इतनी ही संख्या ने सरकार में भरोसा बढ़ने की सूचना दी है. सरकार के प्रति आम भावना का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सर्वे के मुताबिक 63 फीसदी लोगों ने कहा है कि सरकार के प्रति उनका नजरिया सकारात्मक हो गया है और 60 फीसदी ने राष्ट्र निर्माण के लिए काम करने में रुचि दिखाई है.
मन की बात के आखिरी एपिसोड में पीएम मोदी ने कहा कि आपातकाल भारत के इतिहास का एक काला युग था, जब लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर अत्याचार किए गए थे. मोदी ने कहा था कि ‘भारत लोकतंत्र की जननी है. हम 25 जून को नहीं भूल सकते. वो दिन जब आपातकाल लगाया गया था. यह भारत के इतिहास का एक अंधकारमय काल था. लाखों लोगों ने अपनी पूरी ताकत से आपातकाल का विरोध किया. उस दौरान लोकतंत्र समर्थकों पर इतना अत्याचार किया गया कि आज भी रूह कांप जाती है. आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो हमें ऐसे अपराधों पर भी गौर करना चाहिए. यह युवा पीढ़ियों को लोकतंत्र का अर्थ और महत्व सिखाएगा.’