जब भारत ने 14 जुलाई को चंद्रयान -3 को श्रीहरिकोटा से अपने स्वदेशी रॉकेट से लांच किया. फिर ये सफलता पूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो गया. इस खबर के बाद पाकिस्तान में दो तरह की प्रतिक्रियाएं हुईं. कुछ लोगों ने अपनी सरकार का मजाक उड़ाते हुए तहत तरह के मीम्स बनाने शुरू कर दिए. रॉकेट के आकार का एक गुब्बारा आकाश में छोड़ा गया. दूसरी तरफ ये रिएक्शन हुआ कि अपने अंतरिक्ष प्रोग्राम में पाकिस्तान क्यों पिछड़ गया.
आजादी के बाद से ही पाकिस्तान के साथ ये दिक्कत रही है कि वो लंबी लंबी बातें तो बहुत करता है लेकिन उसके ज्यादातर इस तरह के कार्यक्रम पटरी से उतरे हुए हैं. अंतरिक्ष को लेकर भी उसने भारत से कहीं पहले अपने स्पेस प्रोग्राम की शुरुआत की थी . अब तो इस मामले में इतना पिछड़ चुका है कि जब वो अंतरिक्ष या चांद पर जाने की बात करता है तो खुद उसके देश के लोग ही उसकी हंसी उड़ाने लगते हैं. आखिर क्यों पाकिस्तान अंतरिक्ष के मामले में टांय-टांय फिस्स हो गया?
हम सब ये जानते हैं कि भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो दुनिया की सबसे ताकतवर स्पेस एजेंसियों में एक है. अब इसकी गिनती दुनिया की पहली 04 स्पेस एजेंसियों में होने लगी है. लेकिन क्या आपने पड़ोसी देश पाकिस्तान की स्पेस एजेंसी ‘सुपारको’ के बारे में कभी सुना है.
कब शुरू हुआ था पाकिस्तान का स्पेस प्रोग्राम
बहुत कम लोगों को मालूम है कि भारत से कई साल पहले शुरू हुआ था पाकिस्तानी स्पेस प्रोग्राम. सुपारको की स्थापना 1961 में हुई थी जबकि इसरो की स्थापना करीब इसके आठ साल बाद 1969 में हुई थी.
साल 1960 में पाक में सबसे बड़े शहर कराची में पाकिस्तान-अमरीकी काउंसिल का लेक्चर चल रहा था. इस काउंसिल के एक वैज्ञानिक ने अपने एक बयान से सबको चौंका दिया. उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान अब स्पेस एज में दाखिल होने वाला है. हम बहुत जल्द ही अंतरिक्ष में एक रॉकेट भेजने वाले हैं.’ ये वैज्ञानिक थे प्रोफ़ेसर अब्दुस सलाम.
तब पाकिस्तानी वैज्ञानिक के दावे ने खलबली मचा दी थी
उनके इस बयान ने इस पूरे ‘सब कॉन्टिनेंट’ और अंतरराष्ट्रीय जगत में खलबली मचा दी. दूसरे देशों के वैज्ञानिक पाकिस्तान की ये तरक्की के दावे पर दंग रह गए. ये वही वैज्ञानिक अब्दुस सलाम थे जो आगे चल कर विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार जीतने वाले पहले मुसलमान और पाकिस्तानी बने थे.
अयूब खान जब प्रेसिडेंट बने तो अब्दुस सलाम ने उन्हें पाकिस्तानी स्पेस प्रोग्राम को लेकर कई आइडियाज दिए थे. अयूब खान की भी दिलचस्पी इस क्षेत्र में थी, पाकिस्तान को लेकर उन्हें स्पेस में कई संभावनाएं उन्हें नजर आ रही थीं. तारीख 16 सितंबर 1961 को कराची में ‘सुपारको’ यानी पाकिस्तानी ‘स्पेस एंड अपर एटमॉस्फियर रिसर्च कमीशन’ की स्थापना हुई. इसमें अमेरिका ने भी पाकिस्तान की मदद करनी शुरू की.
भारत से पहले छोड़ा था पहला रॉकेट
पाकिस्तान ने अपना पहला रॉकेट साल 7 जून 1962 में छोड़ा था. इस रॉकेट का नाम ‘रहबर-1’ था. सुपारको के इस रॉकेट का मुख्य मकसद मौसम के बारे में जानकारी जुटाना था. पर भारत इसके करीब एक साल बाद ऐसा कर सका.
इस रॉकेट लॉन्चिंग के बाद पूरे उपमहाद्वीप में पाकिस्तान ऐसा करने वाला पहला मुल्क बन गया था. साथ ही पूरे एशिया महाद्वीप में पाकिस्तान ऐसा तीसरा मुल्क. उस समय वो दुनिया का 10वां मुल्क था, जिसने अंतरिक्ष में सफलता पूर्वक रॉकेट छोड़ा था.
तब पाक वैज्ञानिक अब्दुल सलाम की तूती बोलती थी
ये वो दौर था जब विज्ञान जगत में अब्दुस सलाम की तूती बोलती थी. जानकार बताते हैं कि जनरल अयूब खान के दौर में पाकिस्तानी स्पेस कार्यक्रम काफ़ी आगे बढ़ा. उन दिनों अमेरिका और पश्चिमी देशों तक ने पाकिस्तान के स्पेस प्रोग्राम को सराहा था. पर पाकिस्तानी स्पेस प्रोग्राम का स्वर्णिम दौर केवल दस साल रहा. जनरल याह्या खान और प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के दौर में प्राथमिकताएं तेज़ी से बदलीं. जनरल जिया-उल-हक और बाद के शासकों के आने के बाद ‘सुपारको’ बिल्कुल ही हाशिए पर चला गया.